Yadon ke karwan me - 1 in Hindi Poems by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यादों के कारवां में - भाग 1  

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यादों के कारवां में - भाग 1  

काव्य संग्रह:यादों के कारवां में :भाग 1

प्रेम के विविध रूप हैं।यह दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है।रात्रि में अंबर के चंद्र,तारे, बादल,आकाशगंगा की धवल पट्टिका,पूरी पृथ्वी में पसरी निस्तब्धता और चारों ओर फैली चांदनी........ये सब उस विराट सत्ता की ओर संकेत करते हैं जो प्रेम का उत्कर्ष है।अपने घर परिवार और आसपास से शुरू जीवन पथ के विभिन्न बिंदुओं से होती हुई हर प्रेमगाथा अंततः ईश्वर से प्रेम की आत्मिक ऊंचाई तक ही जा पहुंचती है, तो पढ़िएगा अवश्य,प्रेम पर लिखी विविध कविताओं के मेरे इस मौलिक काव्य संकलन यादों के कारवां में को ….✍️🙏

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है एहसास

सदा तुम्हारे साथ होने का।

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है भ्रम

समंदर में लहरों से

जूझती नौका में

मजबूत पतवार के होने का।

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है भ्रम

गहरे विस्तृत जीवन-समंदर में

रास्ता भटकने की स्थिति में

तुम प्रकाश स्तंभ के

सही दिशा बताने का।

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है भ्रम

किसी के हाथ थामने का,

और भयंकर तूफान में भी

हिचकोले खाती नाव के

पार निकाल ले जाने का।

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है भ्रम

किसी टापू के तट से टकराकर

नौका के टूट जाने पर भी

तुम्हारी प्रेरणा के अक्षत रहने का।

तुमसे बढ़कर

है तुम्हारी याद……..

जिससे होता है भ्रम

तुम्हारे लौट आने का।

(2) पथिक और प्रेम का तारा

पथिक

को

रात में अंबर के करोड़ों

टिमटिमाते तारों के मध्य

दिखते हो तुम

बिलकुल एक अलग

चमकते तारे,

उस अँधेरे के राही को

राह दिखाते।

तुम्हें पता नहीं शायद

वह तुम्हें ही देखकर

लगाता है अनुमान

दिशाओं का।

रात के अँधेरे में

टटोलकर बढ़ता,

घुप अंधकार भरी राह में

मार्ग ढूंढ़ता।

रात भर

वह यूँ ही चलता है,

और मार्ग ढूंढ़ते-ढूंढ़ते ही

सुबह हो जाती है।

भोर हो जाने पर

मार्ग ढूंढ़ना भी

आसान होता है

साथ देने वाले भी

मिल जाते हैं,

मगर

दिन के उजाले से

अधिक प्रिय है उसे,

वो अँधियारी रात,

जब तुम उसे साफ दिखाई देते हो।

अंबर में तारों की भीड़ में भी

वह रोज तुम्हें ढूँढ़ लेता है,

तुम्हें ही महसूस करता है।

ठीक उस तरह

जिस तरह

उस दिन सबसे पहले

उसने तुम्हें देखा था

अनायास,

नदी के उस पार के

पेड़ के ठीक ऊपर,

एक अलग आभा से

चमकते सितारे,

मध्य रात्रि में।

तब से वह

प्रतीक्षा करता है तुम्हारी

रोज़ रात्रि में देर तक

तुम्हारी एक झलक को,

यहाँ तक कि

बरसात के मौसम में भी

भीगते,पहुंचकर नदी तट पर

जब बारिश,बूँदों और बिजली में

तुम दिखाई नहीं देते

क्षितिज पर,

तब भी वह

महसूस करता है तुम्हें

बिना तुम्हारे जाने ही।

उसे लगता है

इस जग में

कोई तो है

जो रात के अंधेरे में

उसके साथ चलता है,

उसे राह दिखाता है,

तब भी,

जब और छोड़ देते हैं साथ।

"हम दोनों कभी मिलते हैं नहीं

पर

हम दोनों का है बंधन अटूट"

-यही मानकर,

तुम्हारी हर चीज से

बेख़बर,बेपरवाह

अभी भी तुम्हें

प्रेम करता है,

सुबह के उजाले में

अपने खो जाने तक

पथिक।